“हिन्दु धर्म के दर्शन पर विचार”
डा. अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म पर सारा विचार वर्ण व्यवस्था को धर्म का केन्द्र बिन्दु मान कर रखा।
उनके अनुसार एक हिन्दू दूसरे हिन्दू के साथ कुछ बाँट नहीं सकता । न जीवन काल में, न मृत्यू के बाद । एकता और भाईचारे की भावना से हिन्दू अपरिचित हैं। हिन्दुत्व वह सिद्घान्त है जो दो मनुष्यों की समानता को धार्मिक रूप से नकारता है।
हिन्दू के जीवन का हर क्षण धर्म से नियमित है। वो कैसे जिये, मरे तो कैसे जलाएँ। जब बच्चा पैदा हो तो कौन सा कर्म काण्ड़ किया जाय। उसका नामकरण, मुंडन, उसका पेशा, उसका विवाह, उसका खाना, क्या खाना, और क्या नहीं खाना, कितनी बार खाना, कितनी बार संध्या पूजा करना । दिन कैसे व्यतीत करना।
ये कुछ अजीब सी बात है कि कुछ शिक्षित हिन्दु ये मानते हैं कि इन सब बातों से कुछ अन्तर नहीं पडता।
अछूत, अपमान और जनेयू
वामपंथी विचार इस अपमान का गहराई से अध्ययन करने लगे।
राष्ट्रवादी मान्यता ने स्त्री एवं अछूत माने जाने वाली जातियों के स्वाभिमान पर चोट कर रही मान्यताओं को अनदेखा किया। यह विश्वास इस अध्ययन के केन्द्र बिन्दू में था।
वैलेरियन रोड्रिक्स के अनुसार भारत से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह सांस्कृतिक रूप से गुलामी के समय की अपमानजनक व्यवस्था से अपने हर नागरिक को मुक्त करा सकेगा। रोड्रिक्स के अनुसार भारतीय संविधान की सबसे बड़ी चुनौती अछूतों को सार्वजनिक जीवन में हिस्सा देने की धी। रोड्रिक्स के अनुसार अछूत आज भी भारतीय समाज के हिस्से की तरह नहीं माने जाते।