Thursday, March 28, 2024
HomeHindiसत्ता के लिए कांग्रेस का संगीन खेल

सत्ता के लिए कांग्रेस का संगीन खेल

Also Read

Saurabh Bhaarat
Saurabh Bhaarat
सौरभ भारत

पूरे देश की राजनीति में महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव की घटनाओं से हलचल है। दलितवाद, मनुवाद, ब्राह्मणवाद, सामाजिक न्याय जैसे शब्द चहुँओर सुनाई दे रहे हैं। भीमा-कोरेगांव की घटना से जुडी ऐतिहासिक और समाजशास्त्रीय चर्चाएं जोरों पर हैं। OpIndia.com पर भी कई आँखे खोल देने वाले प्रकाशित हुए हैं। इस बीच पूरे मामले पर राजनीति भी जमकर हो रही है जिसके केंद्र में दलितों का नेता होने का दावा करने वाले जिग्नेश मेवाणी हैं। कांग्रेस के सहयोग से गुजरात में विधायक बन जाना और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ निरन्तर अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करना इनकी अब तक की कुल जमा उपलब्धि है।

गुजरात में इनके चुनावी सफर से अब महाराष्ट्र की घटनाओं तक इन्हें कांग्रेस का पूरा सहयोग और समर्थन मिला है। अभी हाल ही में हुई दिल्ली में इनकी प्रेस वार्ता को भी राहुल गांधी के एक सहयोगी द्वारा प्रायोजित करवाने की बातें सामने आईं। हालाँकि जिग्नेश कांग्रेस पार्टी के प्राथमिक सदस्य तक नहीं हैं, ऐसे में सवाल ये है कि कल तक एक छुटभैय्ये किस्म नेता रहे जिग्नेश की विवादास्पद राजनीति को कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी इतना बैकअप देकर क्यों उनका कद अनवरत बढ़ा रही है? इस सवाल का जवाब पाने के लिए कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास पर गौर करना पड़ेगा।

राजनीतिक लाभ के लिए आत्मघाती और पागल किस्म के नेताओं/उपद्रवियों को पैदा कर संरक्षण, प्रोत्साहन देना काँग्रेस का पुराना खूनी खेल रहा। तीन-चार दशक पहले पंजाब में काँग्रेस पर बढ़त बनाते अकालियों को रोकने के लिए कांग्रेस ने उनके समानांतर खालिस्तान की माँग करने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले को खड़ा होने दिया। शुरू में भिंडरावाले के गुर्गों द्वारा तमाम हिंदुओं और निरंकारी सिखों की हत्या की तत्कालीन केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा इरादतन अनदेखी के आरोप लगे, ताकि अकालियों के विरुद्ध भिंडरावाले को मजबूती से स्थापित कर सियासी लाभ लिया जाए। प्रोत्साहन पाकर बाद में भिंडरावाले इस कदर पागल हो गया देश और समाज के लिए बड़ा खतरा बन गया। उसका अंत तो हुआ लेकिन खालिस्तानी आतंकवाद और काँग्रेसी लालच की कीमत देश और खुद काँग्रेस ने भी चुकाई। हजारों सिखों, हिंदुओं, कई नेताओं और खुद इंदिरा गाँधी की मौत के बाद ही काँग्रेस ने इस खेल से तौबा किया।

समय बदला लेकिन कांग्रेस की दुष्प्रवृत्ति नहीं। साल 2009 में होने वाले विधानसभा चुनाव में काँग्रेस ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबन्धन के सामने अपनी सियासी हालत कमजोर होने का अनुमान किया तो शिवसेना से ही अलग हुए सिरफिरे किस्म के राज ठाकरे को पहले ही बढ़ावा देना शुरू कर दिया। राज ठाकरे के गुंडों ने उत्तर भारतीयों पर हमले किये, लूटपाट की, कई हत्याएं भी हुईं लेकिन महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने यह सब होने दिया क्योंकि वो चाहती थी कि राज ठाकरे का कद बढ़े ताकि मराठियों के वोट राज ठाकरे और शिवसेना में बंटकर रह जाएं जिसका सीधा चुनावी फायदा कांग्रेस को मिले। हुआ भी वही। विधानसभा चुनाव में पहली बार लड़ने वाली राज ठाकरे की पार्टी ने 13 सीटें जीत लीं और करीब 50 सीटों पर शिवसेना के वोटों में सेंधमारी कर कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की। इस प्रकार कई उत्तर भारतीयों की हत्या, सैकड़ों पर हमले और हजारों के पलायन की कीमत पर कांग्रेस ने अपनी सत्ता की भूख मिटाई।

अब आज फिर कांग्रेस राजनीतिक संकट में है। अपनी जमीन खो चुकी है। इसके नव चयनित अध्यक्ष ने चुनाव दर चुनाव धूल चाटकर हारने का रिकॉर्ड बनाया है। कांग्रेस इस समय बुरी तरह भूखी है। गुजरात में कांग्रेस द्वारा समर्थित जातिवादी राजनीति के प्रयोग में करीब बीसियों पटेल युवक आरक्षण आंदोलन की भेंट चढ़ गए। कांग्रेस ने अब जिग्नेश मेवाणी के रूप नया आत्मघाती हमलावर तैयार किया है। जिग्नेश के महाराष्ट्र में प्रवेश करते ही एक मराठी युवक की बलि ले ली गयी है। दलितों के नाम पर जातिवाद की आग और तेज भड़कायी जा रही है। आगे न जाने कितने दलितों, पिछड़ों और अन्य लोगों की बलि लेकर कांग्रेस की सियासी भूख मिटने वाली है। देश की जनता और सरकारें तैयार रहें। सत्ता की हवस में कांग्रेस का जघन्य राजनीतिक खेल देश कहीं देश गृहयुद्ध की आग में न झोंक दे।

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

Saurabh Bhaarat
Saurabh Bhaarat
सौरभ भारत
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular