Friday, March 29, 2024
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जब अब्दुल्ला को सेना ने जीप से बांधकर घसीटा

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RAJEEV GUPTA
RAJEEV GUPTAhttp://www.carajeevgupta.blogspot.in
Chartered Accountant,Blogger,Writer and Political Analyst. Author of the Book- इस दशक के नेता : नरेंद्र मोदी.

पत्रकार महोदय गर्मियों की छुट्टियां मनाने कश्मीर आये हुए थे, सो सोचा कि क्यों न अब्दुल्ला बाप बेटों से भी मुलाक़ात कर ली जाए.

पत्थरबाजों से डरते डराते पत्रकार अब्दुल्ला निवास पहुँच गया. अब्दुल्ला बाप बेटे तो एकदम तैयार ही थे सो पत्रकार का स्वागत करते हुए बोले “आइये पत्रकार महोदय. आजकल तो हमें कोई पूछ ही नहीं रहा है. आप दिल्ली से हमारा इंटरव्यू लेने आये हैं, हमारे बड़े भाग्य हैं.”

पत्रकार ने इधर उधर की बातें छोड़कर, सीधे मुद्दे पर आते हुए अपना पहला सवाल दाग दिया, “आप दोनों पर यह इलज़ाम लगातार लग रहा है कि आप लोग खाते तो हिंदुस्तान का हैं और गाते पाकिस्तान का हैं. इस बात में कहाँ तक सच्चाई है?”

पत्रकार की बात सुनते ही अब्दुल्ला का बेटा भड़क गया, “पत्रकार महोदय, यह सरासर गलत आरोप है. हम इसका पूरी तरह से खंडन करते हैं. हम लोग पूरी तरह से पाकिस्तान से आने वाले पैसों पर ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं- पकिस्तान से आ रहे इसी पैसे में से हमें पत्थरबाजों को भी भुगतान करना होता है. लिहाज़ा हम लोगों पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता. हम लोग खाते भी पाकिस्तान का हैं और गाते भी पकिस्तान का हैं.”

पत्रकार ने अपनी दाल न गलते देख अपना दूसरा सवाल किया, “अभी पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल रो रही थी, जिसमें यह दिखाया गया था कि सेना के कुछ जवान तुम्हारे पिताजी को सेना की जीप से बांधकर घसीट रहे हैं. यह क्या मामला था, जरा उसके बारे में भी देश की जनता को कुछ बताएं.”

पत्रकार के सवाल को सुनकर अब्दुल्ला बाप बेटे पहले तो एक दूसरे की शक्ल देखने लगे, मानों यह तय कर रहे हों कि इस सवाल का जबाब कौन देगा, लेकिन आखिर में अब्दुल्ला के बेटे ने ही अपनी जुबान खोली और अपनी दुःख भरी कहानी सुनाते हुए कहा, “हुआ ऐसा था कि पिछले महीने पकिस्तान से जो पैसा हमें हर महीने आता था, उसके आने में काफी देरी हो गयी थी, उसके चलते हम लोग पत्थरबाजों को भी समय पर भुगतान नहीं कर सके थे. पत्थरबाजों के और सभी आमदनी के जरिये तो हम लोगों ने पहले से ही बंद कर रखे हैं. लिहाज़ा उन लोगों के यहां तो भूखों मरने की नौबत आ गयी थी.”

पत्रकार ने अब्दुल्ला को बीच में ही रोका और झल्लाते हुए बोला, “आपकी इस राम कहानी का मेरे सवाल से क्या लेना देना है, जो सवाल पूछा गया है, अगर उसका जबाब है तो दो, नहीं तो मैं अपने अगले सवाल की तरफ बढ़ूँ.”

अब्दुल्ला ने भी पत्रकार को उसी के अंदाज़ में फटकारा, “अजीब पत्रकार हो, सवाल पूछा है तो जबाब सुनने में इतनी बेसब्री क्यों? इसी कहानी में तुम्हारे सवाल का जबाब छिपा है. भूखे पत्थरबाजों ने अपनी पूरी टोली लेकर एक दिन हम लोगों को घेर लिया और हम दोनों को ही जान से मारने की धमकी देने लगे. इससे पहले कि हम लोगों पर कोई मुसीबत आती, सेना के जवानों की एक जीप हमें दिखाई दी और हम दोनों जोर जोर से चिल्ला कर उनसे अपनी हिफाज़त की गुहार लगाने लगे. सेना का अधिकारी काफी भला व्यक्ति था. उसने हमें उन पत्थरबाजों से बचाने के लिए सिर्फ एक ही शर्त रखी कि वे हम दोनों में से किसी एक को अपनी जीप से बांधकर कम से कम पांच किलोमीटर तक घसीटेंगे. उनका यह भी कहना था कि अगर हम उनकी यह शर्त मान लेंगे तो वे पत्थरबाजों को मार पीट कर भगा देंगे. हम लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए सेना की यह शर्त भी मान ली और फिर आगे जो कुछ भी हुआ, वह तो आप सब जानते ही हैं.”

पत्रकार भी काफी ढीठता पर उतर आया था, “लेकिन सेना ने तुम्हे जीप से बांधकर क्यों नहीं घसीटा, तुम्हारे पिताजी को क्यों बांधकर घसीटा?”

अब्दुल्ला बाप बेटों ने एक बार फिर एक दूसरे की शक्ल देखी और इस बार जबाब अब्दुल्ला के बाप ने दिया, जिसे सेना ने अपनी जीप से बांधकर घसीटा था, “इसमें कोई बहुत बड़ा भेद नहीं है. दरअसल हम दोनों ही यह तय नहीं कर पा रहे थे कि किसे जीप से बांधकर घसीटा जाए तो सेना के एक जवान ने सिक्का उछाल कर यह तय कर दिया कि सेना की जीप से बांधकर ५ किलोमीटर तक मुझे घसीटा जाएगा.”

अब्दुल्ला बाप बेटों की यह दर्दनाक दास्तान सुनते सुनते पत्रकार भी लगभग डरा सहमा सा वहां से चुप चाप खिसक लिया. अब उसे पत्थरबाजों और सेना दोनों से ही डर लगने लगा था.

(इस काल्पनिक रचना में दिए गए सभी पात्र एवं घटनाएं काल्पनिक हैं और उनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है.)

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