व्यसन के उत्पादों से सीख लेते हुए पत्रकार रवीश कुमार सोशल मीडिया के साथ साथ अन्य मंचों पर टीवी कम देखने के लिए कहते रहते हैं। अब रवीश कुमार से अच्छा इस बात को कौन जान सकता है कि टीवी समाज में जिस जहर को घोल रहा है वो समाज के लिए कितना हानिकारक है।
‘प्रोपगंडा’-प्रभु रवीश कुमार के लाख मना करने के बाद भी कुछ मित्र रवीश कुमार का कार्यक्रम देखते हैं और फिर कहते हैं कि रवीश कुमार ‘प्रोपगंडा’ करते हैं। मित्रों जो व्यक्ति लोगों के मरने की खबर बताते हुए भी चेहरे पर मुस्कराहट रखता हो उससे आप ‘प्रोपगंडा’ के अलावा और क्या उम्मीद रखते हैं? यदि आप कुछ उम्मीद रखते हैं तो दोष पूर्णतः आपका है ‘प्रोपगंडा’-प्रभु का बिल्कुल नहीं।
रवीश कुमार जितना ईमानदार पत्रकार मैंने और नहीं देखा है जो आपको साफ – साफ बता दे कि मेरे द्वारा बताई जाने वाली खबर एक ‘प्रोपगंडा’ और इसे देखने से आप डिप्रेशन में जा सकते हैं क्योंकि मेरी खबर जहर के समान है इसलिए इसे ना देखें।
समाचार चैनलों के इस युग में अच्छा टीवी पत्रकार वही बन सकता है जो अभिनय जनता हो। समाचार को चेहरे के एक्सप्रेशन से जनता तक पहुंचने का हुनर रखता हो और अपनी आवाज में वो दर्द रखता हो जो आपको उसकी बात मानने के लिए कन्विन्स कर दे। ठीक वैसे ही जैसे आप प्रभु को पाव किलो लड्डू चढाने पर उनकी मदद जरूर मिलेगी इस बात के लिए कन्विन्स हो जातें हैं।
मैं रवीश कुमार से भी निवेदन करूँगा कि वो अब अपने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहें, “मैं प्रोपगंडा प्रभु रवीश कुमार आपका प्राइम टाइम में स्वागत करता हूँ, मेरे लाख मना करने के बाद भी जब आप टीवी देख रहें हैं तो मैं आपको बताना चाहता हूँ की इस कार्यक्रम में बताई जाने वाली सभी खबरें काल्पनिक हैं और इनका किसी भी जीवित और मृत व्यक्ति के साथ संबध मात्र एक संयोग माना जाएगा।”
नोट : ऊपर लिखी गई सारी बातें सच्चाई से लबरेज हैं, यदि इन तथ्यों का रवीश से मिलन ना हो तो यह मात्र एक संयोग है।