Thursday, April 25, 2024
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रवीश कुमार के लिए एक फ़ैन का खुला पत्र

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Puranee Bastee
Puranee Basteehttps://writerkamalu.blogspot.in/
पाँच हिंदी किताबों के जबरिया लेखक। कभी व्यंग्य लिखते थे अब व्यंग्य बन गए हैं।

रवीश जी नमस्ते,

आजकल आपके कार्यक्रम पर सोशल मीडिया और ट्रोल्स का जिक्र टॅाप ट्रेंड में रहता है। मैं वैसे तो टीवी नहीं देखता परंतु पिछले दस दिन में आपका तीन कार्यक्रम देख लिया है। हर कार्यक्रम में एक बात जो सामान्य थी वो यह थी कि यदि सोशल मीडिया ना होता तो शायद आज भारत सोने की चिड़िया होता।

आप कहते हैं कि सोशल मीडिया पर लोग पैसे लेकर ट्विट कर रहें हैं और कुछ लोग सोशल मीडिया का अपने हिसाब से ध्रुवीकरण कर रहें हैं। मोदी की डीपी लगाकर मोदी के खिलाफ बोलने वालों को गालियाँ दी जाती है।

रवीश जी, यहाँ मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ कि मैं आपके लहजे का बहुत बड़ा फैन हूँ। जिस तरह से आपका अंदाज़े बयान है, वो और हिंदी पत्रकारों से थोड़ा अलग है। वैसे आपकी पत्रकारिता को मैंने बहुत नजदीक से नहीं देखा है क्योंकि २०१४ के आसपास आपको ट्विटर पर पढ़ने के बाद मैंने आपका कार्यक्रम देखना शुरु किया और तब तक आपका चर्चित कार्यक्रम रवीश की रिपोर्ट टीवी पर से लगभग गायब हो चुका था।

आपने कुछ ही दिनों के भीतर सोशल मीडिया पर मुझे ब्लाक कर दिया। मैं ट्विटर पर लगभग – लगभग दो साल से हूँ। इस दरम्यान आपको एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिलेगा जो ये कह सके कि मैंने उसे ट्विट करके गाली दिया है। इसका मतलब आपने मुझे इसलिए ब्लॉक किया होगा क्योंकि मेरा कोई आपके ऊपर कसा व्यंग्य आपको पसंद नहीं आया होगा। चलिए आपको ब्लॉक करने की पूरी आजादी है लेकिन इसके बावजूद मैं समय मिलने पर आपके कार्यक्रम का शुरुआती ६-७ मिनट देख लेता हूँ और ट्विटर पर आपके पक्ष की तारीफ भी कर देता हूँ।

एक साल पहले मुझे एक युवा पठकथा लेखक,कॅामेडियन और फिल्मी संगीत के लेखक ने बारह घंटे के अंदर ट्विटर पर फॅालो करके अनफॅालो कर दिया, ऐसे तो मैं किसी के द्वारा अनफॅालो किए जाने पर कुछ पूछता नहीं हूँ परंतु उनसे पूछ लिया। सर ने बताया कि उन्हें मेरी राजनैतिक विचारधारा पसंद नहीं है इसलिए उन्होंने मुझे अनफॅालो कर दिया। इस घटना के बाद मैं उनसे कम से कम दो बार फोन पर बात कर चुका हूँ। उनके लिखें गीतों को सराहता भी हूँ और सोशल मीडिया पर प्रमोट भी करता हूँ और ट्विटर के डीएम में उनसे प्रायः बात होती रहती है।

२०१४ के चुनाव में मैंने मिलींद देओरा के लिए चुनाव प्रसार में एक छोटा रोल निभाया था और मेरे क्षेत्र के सांसद संजय निरुपम को साफ – साफ बता दिया था कि जब तक राहुल गांधी कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं आप इस क्षेत्र से नहीं जीतनेवाले। इसके बावजूद पिछले सप्ताह ही संजय निरुपम से फिर फोन पर एक मसले को लेकर बात हुई। शशि थरुर के साथ मैं पिछले छह साल में कम से कम दस-बारह ईमेल भेज चुका हूँ और उसका जवाब प्राप्त कर चुका हूँ। यहाँ तक की वो मुझे ट्विटर पर फॅालो भी करते हैं।

आपके चैनल और पैनल वाले कहते हैं कि सोशल मीडिया पर मोदी समर्थकों ने देशभक्ति की डिग्री बांटने का जिम्मा उठा रखा है और मोदी के खिलाफ बोलने वाले को देशद्रोही करार दिया जाता है। नहीं सर, ऐसा नहीं है लेकिन आपके चैनल और पैनल के पास भी देशभक्ति का प्रमाणपत्र देने का कोई एकमात्र अधिकार भी नहीं है। आपका चैनल दिखाता है कि कश्मीर में लोग भारत से खुश नहीं है और वहीं दूसरा चैनल दिखाता है कि कश्मीर के लोग भारत से अलग नहीं होना चाहते हैं। अब किस चैनल पर विश्वास करें? यदि आप कहते हैं आपका चैनल सत्य बता रहा है तो मैं क्यों मान लू कि अगला चैनल झूठ बोल रहा है।

नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जैसे ही स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय मिला मैंने दिन रात मोदी जी की इस बात के लिए आलोचना किया है। जिस देश में पहली कक्षा के बच्चे को पढ़ाने के लिए आपको बारहवीं पास करके, डी.एड करके टीईटी की परीक्षा उत्तीर्ण करके अपनी योग्यता साबित करनी होती है वहाँ स्मृति ईरानी जिनकी शैक्षणिक योग्यता विवादों में रही है उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय का मंत्री बनने का कोई अधिकार नहीं है। एक साल पहले राज्यवर्धन सिंह राठौर के किसी पॅालीसी की आलोचना करने पर उन्होंने ट्विटर के डीएम में मुझे कहा,”हम पर बहुत गुस्से में लगते हो।”

आम आदमी पार्टी और उनके नेताओं पर मैं हमेशा व्यंग्य कसता हूँ परंतु कुमार विश्वास का एक भाषण जिसमें उन्होंने कहा  “राजनीति का धर्म होता है धर्म की राजनीति नहीं होती है।” मैंने सोशल मीडिया पर उनकी प्रशंसा करते हुए शेयर किया।

आपको इतना सब इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि मेरी ही तरह सोशल मीडिया पर कई लाख लोग हैं जिन्हें मोदी, भाजपा और आरएसएस से कोई भी तनख्वाह नहीं मिलती है। हम लोग आज भी पार्टी के नहीं सत्य की राह धरनेवालों के पक्षधर हैं। जैसे कुछ बिकाऊ पत्रकारों के कारण पूरे पत्रकार समाज को बिकाऊ नहीं कहा जा सकता है ठीक उसी तरह कुछ गाली देनेवाले ट्रोल्स के कारण पूरे सोशल मीडिया को पेड ट्रोल्स कहना सही नहीं है।

चलते – चलते इतना कहूंगा, “एक ही जगह ठहरोगे तो थक जाओगे इसलिए धीरे धीरे ही सही चलते रहिए।”

आपका फैन,
कमल (पुरानीबस्ती)

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